Class 6 Hindi पठन सामग्री, अतिरिक्त प्रश्न और उत्तर और सार - ऐसे-ऐसे वसंत भाग - 1
पठन सामग्री, अतिरिक्त प्रश्न और उत्तर और सार - ऐसे-ऐसे वसंत भाग - 1
'ऐसे-ऐसे' एकांकी विष्णु प्रभाकर द्वारा रचित है। इस पाठ में नाटककार ने एक ऐसे बच्चे के नाटक को दिखाया है जो छुट्टी के दिनों में अपना गृहकार्य नहीं बना पाने पर बिमारी का बहाना करता है ताकि वह स्कूल जाने से बच जाए।
पात्र परिचय
• मोहन - एक विद्यार्थी
• दीनानाथ - एक पड़ोसी
• मोहन की माँ
• मोहन की पिताजी
• मोहन की मास्टरजी
• वैध
• पड़ोसिन
• डॉक्टर
सार
मोहन कमरे में बेड पर लेटा बार बार पेट पकड़ कर कराह रहा है। बगल में बैठी उसकी माँ गरम पानी का बोतल से पेट सेंक रहीं है। वह मोहन के पिता से पूछती हैं कि उसने कुछ ख़राब चीज़ तो नहीं खायी है। पिता तसल्ली देते हुए कहते हैं कि मोहन ने केवल केला और संतरा खाया है। दफ़्तर से ठीक ही आया था, बस अड्डे पर अचानक बोला - पेट में 'ऐसे-ऐसे' हो रहा है।
माँ पिता से पूछती हैं कि डॉक्टर अभी तक क्यों नहीं आया। माँ पिता को बताती हैं कि हींग, चूरन, पिपरमेंट दे चुकीं हैं परन्तु कोई लाभ नहीं हुआ। तभी फ़ोन की घंटी बजती है। पिता फ़ोन रखने के बाद बताते हैं कि डॉक्टर साहब आ रहे हैं।
थोड़ी देर बाद वैध जी आते हैं। वे मोहन की नाड़ी छूकर बताते हैं कि उसके शरीर में वायु बढ़ने के कारण ऐसा हो रहा है। वह बताते हैं कि उसे कब्ज़ है, कुछ पुड़िया खाने के बाद ठीक हो जाएगा। वैध जी के जाने के बाद डॉक्टर साहब आ जाते हैं। वे मोहन की जीभ को देखते हैं और बताते हैं कि उसे बदहजमी है। वह दवाई भेजने की बात करते हुए निकल जाते हैं।
डॉक्टर के जाने के बाद पड़ोसिन आती है। वह मोहन की माँ को नयी-नयी बीमारियों के बारे में बताती है। उसी वक़्त मोहन के मास्टरजी भी आ जाते हैं। वह मोहन का हाल पूछते हैं। मास्टरजी समझ जाते हैं कि मोहन ने गृहकार्य पूरा नहीं किया है इसलिए वह बिमारी का बहाना कर रहा है। मास्टरजी सभी को बताते हैं कि मोहन ने महीने भर मस्ती की जिसके कारण उसका स्कूल का कार्य पूरा नहीं हुआ इसलिए उसने यह बिमारी का बहाना किया। मास्टरजी मोहन को दो दिन का वक़्त देते हैं और कार्य पूरा करने के लिए कहते हैं। माँ यह बात सुनकर दांग रह जाती है। पिताजी के हाथ से दवा की शीशी गिरकर टूट जाती है। सभी लोग हँस पड़ते हैं।
पात्र परिचय
• मोहन - एक विद्यार्थी
• दीनानाथ - एक पड़ोसी
• मोहन की माँ
• मोहन की पिताजी
• मोहन की मास्टरजी
• वैध
• पड़ोसिन
• डॉक्टर
सार
मोहन कमरे में बेड पर लेटा बार बार पेट पकड़ कर कराह रहा है। बगल में बैठी उसकी माँ गरम पानी का बोतल से पेट सेंक रहीं है। वह मोहन के पिता से पूछती हैं कि उसने कुछ ख़राब चीज़ तो नहीं खायी है। पिता तसल्ली देते हुए कहते हैं कि मोहन ने केवल केला और संतरा खाया है। दफ़्तर से ठीक ही आया था, बस अड्डे पर अचानक बोला - पेट में 'ऐसे-ऐसे' हो रहा है।
माँ पिता से पूछती हैं कि डॉक्टर अभी तक क्यों नहीं आया। माँ पिता को बताती हैं कि हींग, चूरन, पिपरमेंट दे चुकीं हैं परन्तु कोई लाभ नहीं हुआ। तभी फ़ोन की घंटी बजती है। पिता फ़ोन रखने के बाद बताते हैं कि डॉक्टर साहब आ रहे हैं।
थोड़ी देर बाद वैध जी आते हैं। वे मोहन की नाड़ी छूकर बताते हैं कि उसके शरीर में वायु बढ़ने के कारण ऐसा हो रहा है। वह बताते हैं कि उसे कब्ज़ है, कुछ पुड़िया खाने के बाद ठीक हो जाएगा। वैध जी के जाने के बाद डॉक्टर साहब आ जाते हैं। वे मोहन की जीभ को देखते हैं और बताते हैं कि उसे बदहजमी है। वह दवाई भेजने की बात करते हुए निकल जाते हैं।
डॉक्टर के जाने के बाद पड़ोसिन आती है। वह मोहन की माँ को नयी-नयी बीमारियों के बारे में बताती है। उसी वक़्त मोहन के मास्टरजी भी आ जाते हैं। वह मोहन का हाल पूछते हैं। मास्टरजी समझ जाते हैं कि मोहन ने गृहकार्य पूरा नहीं किया है इसलिए वह बिमारी का बहाना कर रहा है। मास्टरजी सभी को बताते हैं कि मोहन ने महीने भर मस्ती की जिसके कारण उसका स्कूल का कार्य पूरा नहीं हुआ इसलिए उसने यह बिमारी का बहाना किया। मास्टरजी मोहन को दो दिन का वक़्त देते हैं और कार्य पूरा करने के लिए कहते हैं। माँ यह बात सुनकर दांग रह जाती है। पिताजी के हाथ से दवा की शीशी गिरकर टूट जाती है। सभी लोग हँस पड़ते हैं।
कठिन शब्दों के अर्थ
• हवाइयॉ उड़ना - घबराना
• अंट शंट - ऐसी - वैसी चीजे
• गड़ गड़ - गुड़ - गुड़ की आवाज
• भला चंगा - स्वस्थ
• चेरा सफेद होना - परेशान करना
• बला - मुसीबत
• वात - शरीर में रहने वाली वायु के बढ़ने का रोग
• गुलजार - चहल पहल वाला
• बदहजमी - अपच
• छका देना - परेशान करना
• जान निकलना - बहुत डर जाना / परेशान होना
• पेट में दाढ़ी होना - बहुत होशियार होना
• अट्टहास - जोर की हँसी
Credits - StudyRankers
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